आज हम इस लेख में जानेंगे की वर्ण किसे कहते है एवं इसके प्रकार कितने है। वर्ण या ध्वनि उस शब्द को कहते है जिसे तोड़ा नहीं जा सकता है। वर्णो के उदाहरण देखे तो जैसे ‘‘ ग, घ, क, छ ’’ इत्यादि।
हमारे बोलने व लिखने के अनुसार तो वर्ण एक ही होती है लेकिन व्याकरण के अनुसार वर्ण को कई अनेक भागों में बांटा गया है। इसलिए हमें वर्ण क्या है इसे समझना चाहिए। आज का हमारा यह लेख आपको इस के बारे में अच्छे से समझायेगा की वर्ण क्या है एवं इसके कितने प्रकार होते है।
वर्ण क्या है एवं इसके प्रकार के बारे में इस लेख में आपको पूरी जानकारी देने का प्रयास करेंगे। हम उम्मीद करते है की आपको हमारा ये लेख पसंद आएगा। जब हम बचपन में स्कूल में पढते थे तब से ही वर्ण व व्याकरण के बारे में पढते आ रहे है।
इसके बावजूद भी ऐसे कई बिंदु है जो हमें वर्ण व व्याकरण के संदर्भ में समझ नही आते है। हमारे इसी लेख में उन्ही बिन्दुओं को समझाने का प्रयास कर रहे है। चलिये जानते है की वर्ण क्या है और इसके कितने प्रकार है –
वर्ण की परिभाषा
ध्वनि के संकेतों के लिखने की कला का वर्ण कहा जाता है। देवनागरी लिपि में हर एक ध्वनि के लिए एक निश्चित संकेत होता है उसे वर्ण कहते है। किसी भी भाषा की सबसे छोटी इकाई ध्वनि होती है और ध्वनि को हम वर्णों के रूप में लिखते है। भारत की सबसे प्राचीन भाषा संस्कृत मानी जाती है जिससे कई वर्णों का विकास हुआ है।
हिंदी भाषा में बोलने व लिखने की दृष्टि से सबसे छोटी इकाई वर्ण कहलाती है। यह मूल ध्वनि होती है, इन वर्णों के खंड नही होते है। जैसे – ज्ञ, स, क, र, व, प इत्यादि।
वर्ण के प्रकार
वैसे तो वर्णों के समुदाय में 44 वर्ण है परन्तु हिंदी में मुख्य रूप से वर्ण 2 प्रकार के होते है।
- स्वर
- व्यंजन
स्वर
स्वर्ण उन वर्णों को कहते है जिनका स्वतंत्र रूप से उच्चारण किया जाता है। ऐसे वर्ण जिनके उच्चारण के लिए किसी अन्य किसी भी वर्ण की आवश्यकता नहीं होती है। हिंदी भाषा में कुछ वर्णों की संख्या 13 होती है पर उनमें से 11 स्वरों का ही मुख्य रूप से उपयोग किया जाता है। स्वर हमेशा स्वतंत्र रहते है और इनके उच्चारण के लिए कंठ और तालु का उपयोग होता है ना ही जीभ या होंठ का।
हिंदी भाषा में मुख्य रूप से 16 स्वर है जो इस प्रकार है जैसे – अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अः, ऋ, ॠ, ऌ, ॡ इत्यादि।
स्वर को भी वापस 2 भागों में बांटा जा सकता है –
मुल स्वर
सयुक्त स्वर
मुल स्वर
हिन्दी में कूल 8 मूल स्वर है जैसे अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ओ इत्यादि। उच्चारण की दृष्टि से स्वरों को 3 भागों में बांटा गया है –
- ह्रस्व स्वर – ऐसे स्वर जिनके उच्चारण के लिए हमें ज्यादा मेहनत नहीं करनी पडती है ऐसे स्वरों में कम समय लगता है जैसे – अ, ई, ऐ, ऐ इत्यादि।
- दीर्घ स्वर – ऐसे स्वर जिन्हें बोलने के लिए हमें दोगुना समय लगता है वे स्वर दीर्घ स्वरों की श्रेणी में आते है। ऐसे सरल शब्द जिनके उच्चारण में हमें ज्यादा समय लगता है जैसे अ, आ, इ, ई, ओ, औ इत्यादि दीर्घ शब्द के उदाहरण है। दीर्घ स्वर मुख्यतः 7 होते है जो ‘‘ आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ इत्यादि। दीर्घ स्वर को बनाने के लिए 2 अन्य स्वरों की आवश्यकता होती है जैसे ‘‘ अ और अ से मिलकर बनता है आ ’’, “ इ और इ से मिलकर बनता है ई ”
- प्लतु स्वर : इस श्रेणी में वे स्वर आते है जिनके उच्चारण में हमें ज्यादा समय लगता है यानी दोगुने से ज्यादा तीन गुना समय लगता है। इसके कुछ उदाहरण इस प्रकार है – ऐ, औ इत्यादि।
अनुनासिक, निरनुनासिक, अनुस्वार और विसर्ग
हिंदी भाषा में शब्दों का उच्चारण अनुनासिक और निरनुनासिक होता है। विसर्ग जो स्वर के बाद स्वतंत्र रूप से आते है। ऐसे शब्दों का सांकेतिक रूप कुछ इस प्रकार है।
अनुनासिक ( ँ ) – यह एक ऐसा स्वर विसर्ग है जिसका उच्चारण मुँह और नाक के साथ होता है। इसके कुछ उदाहरण – गाँव, आँख, दाँत इत्यादि।
अनुस्वार ( अं ) – इस प्रकार के विसर्ग में बोलने के नाक की ध्वनि का उपयोग होता है जैसे – अंगूर, लंगूर, खंजूर, नंदन, कंगन इत्यादि।
निरनुनासिक – ऐसे जो केवल मुँह से बोले जाते है जैसे उधर, आप, किधर, नजर इत्यादि।
विसर्ग ( : ) – यह विसर्ग जिसे हलंत भी कहते है, पढ़ने में इसका अर्थ ‘‘ ह ’’ होता है जैसे अतः दुःख, प्रायः इत्यादि।
व्यंजन
वे शब्द जिनके उच्चारण के लिए स्वरों की सहायता ली जाती है, व्यंजन कहलाते है। वे शब्द जिनके उच्चारण के लिए स्वरों की सहायता ली जाती है, व्यंजन कहलाते है। व्यंजनों के उच्चारण के लिए स्वर की आवश्यकता होती है, स्वरों के बिना व्यंजनों को बोल नही सकते है। व्यंजन को 5 भागों में बांटा गया है –
- स्पर्श व्यंजन
- अंतःस्थ व्यंजन
- ऊष्म व्यंजन
- उच्छिप्त व्यंजन
- संयुक्त व्यंजन
- स्पर्श व्यंजन :- इस प्रकार के व्यंजनों का उच्चारण करते है आपकी जीभ मुँह के किसी भी भाग को छूती है जैसे कंठ, तालु, मूर्धा, दांत इत्यादि तो यह स्पर्श व्यंजन की श्रेणी में आयेगा। जैसे टमाटर, चम्मच, पतंग इत्यादि।
- अंतःस्थ व्यंजन – अंतः का अर्थ होता है ‘‘ भीतरी ’’, इस श्रेणी में ऐसे व्यंजनों को सम्मिलित किया जाता है जिसके उच्चारण के समय व्यंजन भीतर ही रहते है। जैसे यम, रम, शम इत्यादि।
- ऊष्म व्यंजन – ऊष्म का अर्थ होता है गर्म, ऐसे व्यंजन जिसके उच्चारण के समय मुह में हवा मुंह के अन्य भाग से टकराती है। जैसे – आंचल, कम्मा इत्यादि।
- उच्छिप्त व्यंजन – हिंदी वर्णमाला में यह दो होते है जैसे – ढ़, ड़
- संयुक्त व्यंजन – जहां दो या दो से अधिक व्यंजन मिल जाते है उसे संयुक्त व्यंजन कहते है जैसे अक्षर, नक्षत्र इत्यादि।
संस्कृत में स्वरों को अच् और व्यंजनों को हल् कहते हैं।
निष्कर्ष
यहाँ हमने वर्ण क्या है एवं उसके सभी प्रकारों की जानकारी दी है, अगर आपको हमारा यह आर्टिकल अच्छा लगा है तो अपने दोस्तों के साथ शेयर जरुर करें। अगर शब्द से जुड़ा किसी भी तरह का प्रश्न है तो आप यहाँ कमेंट बॉक्स में पूछ सकते हैं। हमें उम्मीद है की आप हमारा यह मेहनत भरा लेख अपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर करेंगे।