लिपि किसे कहते हैं । लिपि के भेद, परिभाषा, उदाहरण

आज हम इस लेख में जानेंगे की लिपि किसे कहते है एवं इसके प्रकार कितने है। लिपि जो भी हम लिखते है चाहे वह किसी भी भाषा में हो, लिपि कहलाती है। हमारे द्वारा लिखी गई हर वो चीज जिसे हम पढ़  सकते है, लिपि कहलाती है। 

हमारे पढने व लिखने के अनुसार तो लिपि एक ही होती है लेकिन व्याकरण के अनुसार लिपि को कई अनेक भागों में बांटा गया है। इसलिए हमें लिपि क्या है इसे समझना चाहिए। आज का हमारा यह लेख आपको इस के बारे में अच्छे से समझायेगा की लिपि क्या है एवं इसके कितने प्रकार होते है। 

लिपि क्या है  एवं इसके प्रकार के बारे में इस लेख में आपको पूरी जानकारी देने का प्रयास करेंगे। हम उम्मीद करते है की आपको हमारा ये लेख पसंद आएगा। जब हम बचपन में स्कूल में पढते थे तब से ही व्याकरण के बारे में पढते आ रहे है। 

इसके बावजूद भी ऐसे कई बिंदु है जो हमें लिपि व व्याकरण के संदर्भ में समझ नही आते है। हमारे इसी लेख में उन्ही बिन्दुओं को समझाने का प्रयास कर रहे है। चलिये जानते है की लिपि क्या है और इसके कितने प्रकार है –

लिपि की परिभाषा

व्याकरण के संदर्भ में लिपि की परिभाषा देखे तो लिपि की परिभाषा इस तरह है ‘‘ किसी भी भाषा में शब्दों की लिखावट व शब्दों के लिखने की कला ही लिपि कहलाती है। ’’ लिखने की कला ही लिपि कहलाती है। लिखने की यह कला हमेशा बदलती रहती है जो निर्भर करता है उस भाषा पर जिस भाषा में हम लिखते है। 

लिपि का एक साधारण अर्थ भी होता है “ हमारे शब्दों को लिखने की कला”, लिपि कहलाती है। भाषा वो होती है जिस में बोलते है और लिपि वह होती है जिसे हम लिखते है। किसी भी भाषा को साधारण रूप में लिखना लिपि कहलाता है। 

लिपि के प्रकार एवं भेद

प्राचीन काल में जब लिपि का विकास हुआ था तब सबसे पहले देवनागरी लिपि का ही विकास हुआ था उसके बाद अन्य लिपियों का विकास धीरे धीरे हुआ था। लिपि को मुख्य रूप से 3 भागों में बांटा जाता है। 

  1. चित्र लिपि
  2. अल्फाबेटिक लिपि
  3. अल्फासिलैबिक लिपि

चित्र लिपि

पूराने जमाने में लोगों को लिखने का तरीका नहीं पता था तो वे शब्दों को वस्तुओं व चित्रों के जरिये प्रकट करते थे। चित्र लिपि से पूराने जमाने में लोग आसानी से अपने विचारों को व्यक्त कर पाते थे। उहा. जैसे भगवान में आराधना व्यक्त करने के लिए ॐ का चिन्ह बनाया करते थे। चित्र लिपि के उदाहरण हमें इन संस्कृतियों की भाषाओं में देखने को मिलता है। 

  1. प्राचीन मिस्र लिपि – प्राचीन मिस्त्री
  2. कांजी लिपि – जापानी
  3. चीनी लिपि – चीनी

अल्फाबेटिक लिपि

यह एक ऐसी लिपि है, जिसमें व्यंजन की बाद स्वर अपने पूरे अक्षर का रूप लेता है और एक नया शब्द बनाता है। 

  1. सिरिलिक लिपि – रूसी और सोवियत संघ की अन्य भाषाएं।
  2. लैटिन लिपि – अंग्रेजी, जर्मन, फांसीसी, कंप्यूटर प्रोग्रामिंग, इत्यादि भाषाएं इसमें शामिल है। 
  3. अरबी लिपि – आरबी, कश्मीरी, फारसी, उर्दू इत्यादि भाषाएं
  4. इब्रानी लिपि – इब्रानी।
  5. यूनानी लिपि – यूनानी और थोड़े गणित के चिन्ह जैसे शब्द

अल्फासिलैबिक लिपि

यह एक ऐसी लिपि है जिसमें अगर कोई व्यंजन न हो तो इसमें स्वर का पूरा चिन्ह लिखा जाता है। अगर इस प्रकार की लिपि की हर इकाई में एक या एक से अधिक व्यंजन होता है जो ऐसे में इस लिपि में स्वर की मात्रा का चिन्ह लगाया जाता है। इस प्रकार की लिपि के कुछ उदाहरण इस प्रकार है।

  1. देवनागरी लिपि – हिंदी, संस्कृत, मराठी, कोंकणी, नेपाली लिपि इत्यादि। 
  2. गुरमुखी लिपि – पंजाबी
  3. तमिल लिपि – तमिल
  4. गुजराती लिपि – गुजराती
  5. बंगाली लिपि – बांग्ला
  6. ब्राझि लिपि – कन्नड़, प्राचीन काल में संस्कृत और पाली लिपि इत्यादि। 
  7. कानो लिपि – जापानी

देवनागरी से बनी अन्य लिपियाँ

देवनागरी लिपि प्राचीन भारत की मुख्य भाषा है। इस भाषा का विकास लगभग 1000 से 1200 ई.पू हुआ माना जाता है। यह भारत की सबसे प्राचीनतम लिपि है। इस लिपि का विकास काशी देवनागरी में हुआ है जिस वजह से इस लिपि को देवनागरी लिपि कहा गया है। 

हमारे आसपास में हमें जितनी भी लिपि देखने व सुनने को मिलती है उन सब का विकास इसी लिपि से ही माना जाता है। प्राचीन काल में आर्यों ने इस लिपि का इस्तेमाल किया था। इसके बाद बौद्ध काल में बौद्ध लिपि का उपयोग काफी तेजी से होने लगा। 

भारत में लिपि का इतिहास 

हमारे प्राचीन भारत में सबसे पहले चित्र लिपि का प्रयोग किया जाता था। भारत में लोग पहले अपने शब्दों को बताने के लिए चित्र लिपि का प्रयोग किया करते है। हमे वर्तमान में ऐसे कई प्रमाण मिले है जिससे यह कहा जा सकता है की विश्व की सभी लिपियों का उद्भव भारत से ही माना जाता है। प्राचीन भारत में हमें 2 प्रकार की लिपि मिलती है जिसमें खरोष्ठी लिपि और ब्राह्मी लिपि प्रमुख है। यह दो लिपियों का भारत में सबसे ज्यादा विकास हुआ है।

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने किया प्रसार – प्रचार 

वर्तमान में देवनागरी लिपि का जिस तरह से विकास और इस लिपि का प्रसार – प्रचार हुआ है उसके लिए भारतेंदु हरिश्चंद्र को की श्रेय दिया जाता है। साल 1882 में शिक्षा विभाग ने भारतेंदु जी से लिपि के संदर्भ में प्रश्न पूछा था जिसके संदर्भ में उन्होंने जवाब देते हुए कहा था ‘‘ सभ्य समाज में नागरिकों की बोली और लिपि का प्रयोग होता है। ’’ उन्होने यह भी कहा था ही भारत एक ऐसा देश है जहां पर अदालतों में शासकीय भाषाओं का प्रयोग किया जाता है ना की जनता की भाषा का। 

निष्कर्ष

यहाँ हमने लिपि क्या है एवं उसके सभी प्रकारों की जानकारी दी है, अगर आपको हमारा यह आर्टिकल अच्छा लगा है तो अपने दोस्तों के साथ शेयर जरुर करें। अगर शब्द से जुड़ा किसी भी तरह का प्रश्न है तो आप यहाँ कमेंट बॉक्स में पूछ सकते हैं। हमें उम्मीद है की आप हमारा यह मेहनत भरा लेख अपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर करेंगे।

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